
बफीüली रातों की एक हवा जागी
और बर्फ की चादर ओढ़
सुबह के दरवाजे पर दस्तक दी उसने
उनींदी आखों से सुबह की अंगड़ाई में
भीगी जमीन ज्यों
फूटा एक नया कोपल
नए जीवन और नई उमंग नई खुशियों के संग
दफना कर कई काली रातों को
çझलमिलाते किरनों में भीगता
नई आशाओं की छाव में
सपनों का संसार बसाने
बफीüली रात की अंगड़ाई के साथ
बसंत के आने की उम्मीद लिए
आज सब पीछे रह छोड़ चला
वो अपनाने नए आकाश को
नए सुबह की नई धूप में
नई आशाओं की किरन के संग
आज फिर आया है नया साल
पीछे छोड़ जाने को परछाइयां
(साभार मानोशी चटर्जी)
सभी ब्लोगर बंधुओं, दोस्तों और प्रियजनों को नए साल की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।