प्रदेश के लोकप्रिय और जन हितैषी राज्यपाल का पद पर रहते हुए निधन हो गया, यह सबके लिए दुज्ख की बात थी, लेकिन संवेदनाएं किस कदर मर चुकी हैं, इसकी बानगी सरकारी दतरों में खूब देखने को मिली। जैसे ही राज्यपाल के निधन का समाचार सरकारी कर्मचारियों को मिला उनके मुा से तो केवल यही निकला कि मतलब कल की छुट्टी हो गई, चलो मजा आ गया। अब लोगों को प्रदेश के प्रथम नागरिक के निधन पर मजा आ रहा है तो यह सोचने की बात है कि दुघüटनाओं और अन्य कारणों से होने वाली आमजन की मौत के उनके लिए क्या मायने हैं। लोग किसी की मौत में भी मस्ती का मौका ढूंढने लगे हैं। ऐसा मैंने सिर्फ राज्यपाल के निधन पर ही नहीं देखा सुना है, अक्सर सरकारी कर्मचारियों के मुा से किसी बड़े व्यçक्त की मौत पर सबसे पहले यही शब्द निकलते हैं कि उसे तो मरना ही था यह बताओ कल की छुट्टी हुई या नहीं। आखिर हमारी संवेदनाएं इतनी क्षीण क्यों हो चली हैं?