शुक्रवार, 27 मार्च 2009

दो मिनट का समान फिर...

एक बूढ़ी अमा आती है। करीब हजार लोगों के बीच एक मिनट की शौर्य गाथा सुनाई जाती है, एक प्रशस्ति पत्र और छोटासा मैडल दिया जाता है। बस यही दो मिनट का समान, उस महान सपूत के लिए जो अपनी आखिरी सांस तक इस देश के लिए लड़ता रहा। उसके घर परिवार से यहीं खत्म हो जाता है, सरकार और जनप्रतिनिधियों व अन्य लोगों का नाता। जवान पत्नी और बच्चे, एक बूढ़ी अमा कैसे जिंदगी का लंबा सफर तय करेंगे, इसकी परवाह कोई नहीं करता और फिर बड़े शान से कहा जाता है आर्मी अतिसमाननीय पेशा है। युवाओं को इसमें जरूर आना चाहिए, लेकिन असलियत में तो समान सिर्फ दो मिनट का है। गुरुवार शाम को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील देश के नौजवानों और मरणोपरांत उनके परिजनों को शौर्य और कीर्ति चक्र प्रदान कर रही थीं, दूरदर्शन पर इस कार्यक्रम का प्रसारण देख रहा था। यह समान लेने के लिए कुछ जवानों की पçत्नयां और बूढ़ी मां आईZ तो यह प्रश्न बार-बार मन में उठ रहा था कि बेटे ने नाम तो कर दिया, लेकिन पत्नी और बच्चों की जिंदगी का इतना लंबा सफर कैसे तय होगा। हो सकता है कई जवानों के घर संपन्न हो, लेकिन बात पैसे की नहीं बात उस समान की भी है, जो उस जवान की पत्नी को शायद अब नहीं मिले। बच्चों को एक पिता का प्यार और अच्छी परवरिश नहीं मिलेगी। एक बूढ़ी मां बेटे की शहादत का दर्द जीने तक कैसे सहेगी। कुछ ही दिनों पहले मेरे जयपुर से भी एक महान सपूत मेजर भानुप्रताप सिंह आतंककारियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे, अखबार में काम करने के कारण उनके परिजनों के विलाप के वे सभी फोटो मैंने देखे जो किसी भी पत्थर दिल को भी पिघला दे, लेकिन दुज्ख होता है कि हमारे देश के नेताओं का दिल पत्थर से भी कठोर है। भानु की शहादत पर सहानुभूति प्रकट करने कई नेता पहुंचे थे, लेकिन आज भानु की पत्नी और बच्चे, मां और पिता कैसे हैं, ये किसी को खबर नहीं। अब आर्मी की ओर युवाओं का रुझान बढ़े तो कैसे?

7 टिप्‍पणियां:

इरशाद अली ने कहा…

बहुत सही बात कही है सून्दर प्रयास। बहुत बहुत बधाई

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सही कहा ... सिर्फ सम्‍मान देकर अपने कर्तब्‍यों की इतिश्री समझ लेते हें ये लोग।

ddsilent ने कहा…

उस बूढी मां का सपूत देश की आन बचाने के ही जन्मा था, देश के ऐसे सपूत सत्-सत् नमन. रही उस बूढी मां की बात वो तो आज भी यही चाहती हैं कि वो ऐसे ही तीन और सपूतों को जन्म देतीं, जो सदा देश के लिए मर मिटने को तैयार रहते. उस बूढी मां की आंखें कभी नहीं पथाराएगी. उस शहीद की वीरांगना तो गर्व से यह कह रही हैं कि वो भी अपने लाल को 'माटी का लाल' बनाएगी.

sandeep sharma ने कहा…

तरुण भाई,
ऐसा ही होता है...
केवल एक गोल्ड मैडल लाने पर एक खिलाडी के नाम पर तमाम मार्ग, स्कूल, कॉलोनियां काट दी जाती हैं, फ्लेट और करोडों रूपये बाँट दिए जाते हैं...

पर मुंबई हमले में शहीद को केवल चंद लाख में भुला दिया जाता है...

पुरे देश को बात अलग, उसी प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा अनाप-शनाप बयानों से शहीद को श्रधांजलि दी जाती है...

Publisher ने कहा…

अच्छा प्रयास।

तबियत सही है। पता चला था कि अभी तक पोस्टिंग नहीं दी है। आचार संहिता में मामला अटका हुआ है?

Harshvardhan ने कहा…

achchi poi ... likhte raho lagataar....

Unknown ने कहा…

Pyar bin kuchh nahi........
mai to pyar ke bare me bahut kam janta hu lekin jo janata hu o sabase achchhe hai kyoki pyar me kuchh janane ki jarurat nahi hoti hai. pyar aisa chiz hai jo sab kuchh apane aap bata deta hai. mai bhi bahut anjan tha esake baare me lekin mere hi pados ke ek ladaki ne jab mere se pyar ka ijahar kiya tab mujhe samajh aaya ki sach me pyar bina jindgi kuchh nahi.