शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

जिंदगी की यही रीत है

जिंदगी के हर मोड़ पर विरोधाभास है। हमारे पैदा होने से लेकर मरने तक हमें इन्हीं विरोधाभासों के बीच जीना होता है। जो हम चाहते हैं वो हमे मिलता नहीं। जिसके बारे में हमने कभी सोचा नहीं वो आसानी से मिल जाता है। जैसे-जैसे कुछ मिलता जाता है। वैसे-वैसे कुछ छूटता जाता है। मुझे याद है मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था। घर वाले चाहते थे। मैं पढ़ लिखकर अफसर बनूं, इसलिए नवोदय स्कूल की परीक्षा दिलाई। मैं जैसे-तैसे मेहनत करके जिले के 40 उन बच्चों में शामिल हो गया, जिनका चयन हर साल इस स्कूल के लिए किया जाता है। बस यहीं से अपनों से दूर होने का सिलसिला शुरू हो गया। इसके बाद खुद को संवारने के लिए जैसे-जैसे आगे बढ़ा बहुत कुछ पीछे छूटता गया। कभी दोस्तों से दूरी बनी तो कभी भाई बहन, दादा-दादी और सभी घर वालों से। जब मैं पहली बार नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया तो उसी दिन बाबा की तबीयत अचानकर खराब हुई, उन्हें अस्पताल में भतीü करवाना पड़ा। जब सलेक्शन हो गया और ऑफिस से कॉल आया तो पता चला बाबा कोमा में चले गए और बिना बोले ही इस दुनिया से चले गए। मैं उन्हें यह भी नहीं बता सका कि मैरी नौकरी लग गई है। मेरी ख्वाहिश अधूरी ही रही कि पहली तन्ख्वाह से उनके लिए कुछ ला पाता। जिंदगी का विरोधभास यहां भी खत्म नहीं हुआ। जब पहला प्रमोशन मिला तो उसके ठीक दो दिन बाद मेरी एक अजीज दोस्त से दूरियां बन गई, करीब डेढ़ साल हो गया, उसके बाद आज तक उससे बात भी नहीं हो सकी। उसके साथ बिताए वो दिन आज भी रुला देते हैं। इसके बाद जब दूसरा प्रमोशन मिला तो उस दिन दादी की तबीयत ख्ाराब हो गई और उसे अस्पताल में भतीü करवाने गया। 20 दिन तक अस्पताल में ही ऊपर नीचे चक्कर काटते-काटते गुजरे। अब डर लगता है कि भगवान समृद्धि और खुशी तो दे लेकिन ऐसी नहीं कि जिनके लिए समृद्धि चाहिए वो ही साथ नहीं रहे। ऐसा शायद सबके साथ होता है, लेकिन क्यों होता है किसी को पता नहीं। अगर कोई इस राज को जान पाए तो मुÛो जरूर बतलाए।

2 टिप्‍पणियां:

sudhakar soni,cartoonist ने कहा…

sahi kaha tarunbhai,mere papa mujhko cartoon banane k liye humesha protsahit karte the.........par main mera pahla publish cartoon unhe nahi dikha sakaa

manglam ने कहा…

जीवन की रीत को बहुत ही सटीक शब्दों में बयान करने के लिए बहुत-बहुत साधुवाद, लेकिन यह भी सत्य है कि जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी होता है। ऐसे में ईश्वर से यही प्राथॅना की जा सकती है कि जो कुछ खो भी जाए, तो उसकी कमी महसूस करने की शिद्दत बनी रहे।