
ऑफिस से फ्री होने के बाद रात दो बजे चाय पीने का प्रोग्राम हम बहुत कम ही मिस करते हैं। चाय पीने का शौक हम हम दो-चार लोगों को ऐसा पड़ चुका है कि अब जिस दिन चाय नहीं पियें और थोड़ी गपशप नहीं करें ऐसा लगता है जैसै ऑफिस की छुट्टी हो। कल चाय पीते-पीते प्यार का किस्सा शुरू हो गया, पर अंत तक यह नहीं समझ पाए कि आखिर सच्चा प्यार किसे कहा जाए। सब अपने-अपने बारे में बता रहे थे। एक भाईसाहब का कहना था कि मुझे पहला प्यार महज चार वर्ष की उम्र में हुआ, जब मैं पहली कक्षा में पढ़ता था और उसके बाद जिंदगी में जितनी भी लड़कियां आईZ, ऐसा लगा मैनें सबसे सच्चा प्यार किया। उन्हें अपने एक प्यार पर थोड़ी ग्लानि भी थी, लेकिन सबकी राय थी कि प्यार में ऐसा हो ही जाता है। इन महाशय को जब चार वर्ष की उम्र में ही प्यार का अहसास हो गया तो लोग ये क्यों कहते हैं कि शुरुआती प्यार सिर्फ आकर्षकण होता है, क्योंकि बचपन में तो कोई आकर्षण भी नहीं होता, बचपन तो बहुत भोला होता है। जो होता है सब सामने होता, न कोई छल न कपट। चलो यहां से आगे बढ़े तो दूसरे भाईसाहब की प्रेम कहानी शुरू हुई, उन्होंने बताया कि उन्हें भी जीवन में दो चार बार प्रेम हो ही गया, आखिरी के दो बार का प्रेम उनकी जिंदगी में बहुत छोड़ गया। बिछोह से लेकर प्यार का अत्यंत मीठा अहसास इन दोनों बार के प्यार में उन्हें हुआ, लेकिन प्यार मंजिल तक नहीं पहुंचा, कारण चाहे जो भी रहा हो। उनका कहना यही था कि जीवन में सबको दो-चार बार प्यार हो ही जाता है। सो उन्हें भी हो गया, लेकिन प्यार ने उन्हें बहुत कुछ सिखा दिया, पढ़ने को शौक था, लेकिन लिखने का यहीं से शुरू हुआ। एक भाईसाहब ने बताया कि उन्हें जीवन में प्यार करने का टाइम ही नहीं मिला, घर गृहस्थी में रहते-रहते कब 40 पार हो गए, पता ही नहीं चला, लेकिन सबकी बातों में एक बात साफ थी कि कौनसा प्यार सच्चा है, कौनसा झूठा, कौनसा मंजिल तक पहुंचेगा और कौनसा नहीं यह किसी को पता नहीं था, सब बस प्यार किए जा रहे थे। सबके प्यार में स्वार्थ होते हुए भी निस्वार्थ भाव था, लेकिन शायद इन सबके प्यार में सच्चा प्यार कोई था तो पहले भाईसाहब का जो बचपन में हुआ और उन्हें आज 25 बसंत बाद भी याद है और दूसरा प्यार वो जो हम सबका चाय से है और शायद आखिरी सांस तक रहे।